हिंदी का भी कुछ हो सकता है क्या ?
सरकार द्वारा हिंदी को प्राथमिकता देने पर इतना हो-हल्ला तो नहीं मचना चाहिए था पर अफ़सोस ऐसा हो रहा है... अगर हिंदी की जगह इंग्लिश की बात की जाती तो शायद इतना हो हल्ला नहीं मचता...बड़ा अजीब है ना जब भी हिंदी की बात की जाती है लोग चिल्लाने लगते है, कहते हैं उनपर हिंदी ना थोपी जाये...पर हिंदी भाषी लोगों पर आज जो ज़बरदस्ती इंग्लिश थोपी जा रही है वो किसी को नहीं दिखता..ना हीं कोई हो-हल्ला मचाता है... आज-कल तो लोग हिंदी को समाप्त करने पर तुले हुए हैं..हिंदी की कोई पूछ नहीं रही और ना हीं इसकी कोई इज़्ज़त है... तभी तो हिंदी जानने वालों को कमतर आँका जाता है..वही इंग्लिश जानने वालों को सर पर बिठाया जाता है...यही कारण है कि आजकल हिंदी जानने वाले हीनभावना से ग्रसित होते जा रहे हैं...शायद एक हिंदी जानने वाले के प्रधानमंत्री बनने से , हिंदी को फिर से जीवित करने कि कोशिश की जा रही है...शायद वो हिंदी भाषी लोगों का दर्द समझते हों इस कारण कुछ कर सके तो कोई आश्चर्य ना होगा...अगर सरकार वाकई राजनीति ना कर दिल से हिंदी के लिए कुछ करना चाहती है... तो हिंदी को रोज़गार देने वाली भाषा बनानी होगी तभी हिंदी का उद्धार हो सकता है....क्यों कि हिंदी जानने वालों को रोज़गार कम मिलता जब कि अंग्रेज़ी जानने वालों को रोज़गार आसानी से मिल जाती है और आजकल हर जगह इंग्लिश जानने वालों को पहले प्राथमिकता दी जाती है.....इसलिए सरकार को हिंदी को रोज़गार परक बनना होगा वरना ये बातें बस बातें हीं रह जाएगी...
गजेन्द्र कुमार
सरकार द्वारा हिंदी को प्राथमिकता देने पर इतना हो-हल्ला तो नहीं मचना चाहिए था पर अफ़सोस ऐसा हो रहा है... अगर हिंदी की जगह इंग्लिश की बात की जाती तो शायद इतना हो हल्ला नहीं मचता...बड़ा अजीब है ना जब भी हिंदी की बात की जाती है लोग चिल्लाने लगते है, कहते हैं उनपर हिंदी ना थोपी जाये...पर हिंदी भाषी लोगों पर आज जो ज़बरदस्ती इंग्लिश थोपी जा रही है वो किसी को नहीं दिखता..ना हीं कोई हो-हल्ला मचाता है... आज-कल तो लोग हिंदी को समाप्त करने पर तुले हुए हैं..हिंदी की कोई पूछ नहीं रही और ना हीं इसकी कोई इज़्ज़त है... तभी तो हिंदी जानने वालों को कमतर आँका जाता है..वही इंग्लिश जानने वालों को सर पर बिठाया जाता है...यही कारण है कि आजकल हिंदी जानने वाले हीनभावना से ग्रसित होते जा रहे हैं...शायद एक हिंदी जानने वाले के प्रधानमंत्री बनने से , हिंदी को फिर से जीवित करने कि कोशिश की जा रही है...शायद वो हिंदी भाषी लोगों का दर्द समझते हों इस कारण कुछ कर सके तो कोई आश्चर्य ना होगा...अगर सरकार वाकई राजनीति ना कर दिल से हिंदी के लिए कुछ करना चाहती है... तो हिंदी को रोज़गार देने वाली भाषा बनानी होगी तभी हिंदी का उद्धार हो सकता है....क्यों कि हिंदी जानने वालों को रोज़गार कम मिलता जब कि अंग्रेज़ी जानने वालों को रोज़गार आसानी से मिल जाती है और आजकल हर जगह इंग्लिश जानने वालों को पहले प्राथमिकता दी जाती है.....इसलिए सरकार को हिंदी को रोज़गार परक बनना होगा वरना ये बातें बस बातें हीं रह जाएगी...
गजेन्द्र कुमार