Thursday, 30 July 2015

जैसे वो कोई आतंकी नही मसीहा था ...

याकूब मेमन की फांसी पर देश का एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग ऐसे हायतौबा मचा रहा है जैसे वो कोई आतंकी नहीं बल्कि कोई मसीहा था। अफ़सोस होता है इनकी बुद्धिमता पर, क्या ऐसा करके ये बुद्धिजीवी वर्ग देश को ये सन्देश देना चाहता है की देश के सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी संदिग्ध होता है? इस पर विश्वास मत करो। ऐसा करके देश में एक अविश्वास का माहौल बनाना चाहते हैं ? याकूब मेमन इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया? देश के सामने इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा कोई और नहीं है क्या? याकूब क्या इसलिए महत्वपूर्ण हो गया क्यूंकि वो इक मुस्लिम (कहने को अल्पसंख्यक) था, क्या ये बुद्धिजीवी वर्ग ये कहना चाहता है कि अल्पसंख्यकों को भारत में न्याय नहीं मिलता? भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर दोहरी नीति है? अगर ऐसा होता आज पूरा देश, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के चले जाने पर रो नहीं रहा होता। अगर याकूब भी अच्छा इंसान होता तो देश उसके बारे में ज़रूर सोचती, एक कातिल पर रहम कैसा, फिर तो डेल्ही गैंग रेप के आरोपियों पर भी रहम करनी चाहिए थी। उनके लिए ये बुद्धिजीवी वर्ग क्यों नहीं बोला। क्या इसलिए की वो अल्पसंख्यक नहीं था। ये लोग राजीव गांधी के हत्यारे, भुल्लर आदि का उदाहरण देकर याकूब को बचाना चाहते थे। अगर आपको अपनी बुद्धि पर इतना नाज़ है तो आप ये जानते हुए की याकूब दोषी है का बचाव न करके उन लोगों को सज़ा दिलाने की कोशिश करते जिनको उनके अपराध के अनुसार सज़ा नहीं मिली। इन बुद्धिजीवी वर्ग से मेरा विनम्र निवेदन हैं कि याकूब का मुद्दा छोड़ के देश में गरीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी से हर दिन मर रहे लोग या मर-मर के जी रहे लोगों का मुद्दा उठाये और उनका अपना हक़ दिलवाए। अगर वो ऐसा कर सके तो उनका देशपर बड़ा एहसान होगा।
                                                                                                         गजेन्द्र कुमार