ख़ामोश रहता है वो शख़्स... जिसकी एक आवाज़ से घर में सन्नाटा छा जाता था। जिनका कोई भी फैसला घर वालों के लिए आख़िरी फैसला हुआ करता था। आज उनके फैसले का कोई कदर नहीं। उनके फैसले से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखने वाला घर का सदस्य भी मुस्कुरा कर उनके फैसले का स्वागत किया करता था। उनके फैसलों का नतीजा हीं तो है कि आज इस परिवार का समाज और गॉव में इतना नाम है, इज़्ज़त है। आज वो शख़्स बेबस है, खामोश है, उनकी कोई नहीं सुनता, उनके फैसलों पर अचानक उँगलियाँ उठनी शुरू हो गयी है, लोगों का विश्वास उनपर से उठने लगा है। ये सच हीं कहा गया है कि वक़्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। बुढ़ापे के दहलीज़ पर आकर ये शख्स ये सोचकर कितना मन हीं मन तड़पता होगा कि जिस परिवार के ख़ातिर मैंने अपनी हज़ारों ख़्वाहिशें दफ़न की उसका नतीज़ा ऐसा हुआ।
सोचता होगा कि इस परिवार को बनाने में अपनी पुरी उम्र लगाई ताकि बुढ़ापे में सुकून और चैन की ज़िंदगी बिताएंगे। इन्होने परिवार रुपी मज़बूत पेड़ इसलिए लगाया था कि बाद में उन्हें छाया देगा पर इन्हें कहां मालूम था की इन पेड़ों को उनकी छाया की आदत पड़ जाएगी। विडंबना ये है कि लोग आज भी इस बूढ़े बरगद के पेड़ को सहारा देने के बजाय इनसे सहारा और छाँव मांगते हैं। कुछ लोग ये भी तोहमत लगाते हैं कि मुझे छाँव कम दिया। उनकी इन बातों पर ये विशाल बूढ़ा बरगद का पेड़ मंद-मंद मुस्कुराता है, ये सोचकर कि मैंने तो अपनी टहनियां फैलाकर हर किसी को बस छाँव देने की कोशिश की, खुद को धुप में जलाकर, बिना किसी स्वार्थ के, कोई ज्यादा छाँव ले गया तो इसमें मेरा क्या कसूर? किसी को ज्यादा छाँव देने से मुझे क्या फायदा? बरगद का पेड़ मायूस होता है आज भी उनकी मांग पर, पर जितना हो सकता है आज भी उनके लिए कर रहा है, आखिर उनसे प्यार जो करता है, पर बरगद को उनके प्यार से भरोसा उठता जा रहा है... दिल को तस्सली देता रहता है इस बात से कि प्यार देने का नाम है लेने का नहीं !!!
गजेन्द्र बिहारी
सोचता होगा कि इस परिवार को बनाने में अपनी पुरी उम्र लगाई ताकि बुढ़ापे में सुकून और चैन की ज़िंदगी बिताएंगे। इन्होने परिवार रुपी मज़बूत पेड़ इसलिए लगाया था कि बाद में उन्हें छाया देगा पर इन्हें कहां मालूम था की इन पेड़ों को उनकी छाया की आदत पड़ जाएगी। विडंबना ये है कि लोग आज भी इस बूढ़े बरगद के पेड़ को सहारा देने के बजाय इनसे सहारा और छाँव मांगते हैं। कुछ लोग ये भी तोहमत लगाते हैं कि मुझे छाँव कम दिया। उनकी इन बातों पर ये विशाल बूढ़ा बरगद का पेड़ मंद-मंद मुस्कुराता है, ये सोचकर कि मैंने तो अपनी टहनियां फैलाकर हर किसी को बस छाँव देने की कोशिश की, खुद को धुप में जलाकर, बिना किसी स्वार्थ के, कोई ज्यादा छाँव ले गया तो इसमें मेरा क्या कसूर? किसी को ज्यादा छाँव देने से मुझे क्या फायदा? बरगद का पेड़ मायूस होता है आज भी उनकी मांग पर, पर जितना हो सकता है आज भी उनके लिए कर रहा है, आखिर उनसे प्यार जो करता है, पर बरगद को उनके प्यार से भरोसा उठता जा रहा है... दिल को तस्सली देता रहता है इस बात से कि प्यार देने का नाम है लेने का नहीं !!!
गजेन्द्र बिहारी