Sunday, 31 January 2016

बस यूँ हीं ...

शादी से पहले इंसान माँ-बाप के नज़रों में हीरो बनने के कोशिश करता है
और शादी के बाद अपनी पत्नी के नज़रों में...
और इस बीच माँ-बाप अक्सर विलेन बन जाते हैं।

बेटा अपने बूढ़े माँ-बाप को अक्सर उनका फ़र्ज़ याद दिलाता हैं
पर अफ़सोस वो अपना फ़र्ज़ भूल जाता हैं।

Sunday, 10 January 2016

न्यूज़ में मीडिया की खबरें भी दी जानी चाहिए ...

न्यूज़ को कई वर्गों में बाँटा जाता है जैसे राजनीती, खेल, बिजनेस आदि। इस वर्ग में एक और विषय को शामिल करना चाहिए और वो है मीडिया। आज-कल हर किसी की जुबान पर मीडिया का नाम होता है। मीडिया ने ये किया,  मीडिया ने वो किया, सब मीडिया का करा-धरा है, ये सारी बातें सुनने को मिलती हैं। आखिर मीडिया है क्या ? मीडिया में क्या चल रहा है ? मीडिया में काम करने वालों की क्या समस्या है ? इन सबकी जानकारी भी लोगों तक पहुंचनी चाहिए। लोगों की समस्याओं को जुबान देने वाला मीडिया खुद अपनी समस्याओं को जुबान नहीं दे पाता और चुप-चाप लोगों की गाली सुनता रहता है।  कौन समझेगा इनकी मज़बूरी को, कौन दूर करेगा इनकी समस्याओं को ? यह बहुत बड़ा सवाल है। 

Sunday, 8 November 2015

बिहार विधान सभा चुनाव...

बिहार विधान सभा चुनाव में महागठबंधन की बड़ी जीत का श्रेय लालू यादव और नीतीश कुमार लेकर खुश हो रहे हैं पर मैं तो उनसे यही कहना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री मोदी जी की तरह आप भी इस गलफहमी में मत रहना कि आप दोनों की लहर चल पड़ी है। लोकसभा में मोदी जी की जीत की वजह मोदी लहर नहीं था बल्कि मनमोहन सरकार का खराब प्रदर्शन था। लोग सबसे ज्यादा करप्शन से परेशान थे लोग हर हाल में कांग्रेस से छुटकारा पाना चाहते थे और ऐसे में लोगों के पास बीजेपी के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। लोगों का कांग्रेस के प्रति गुस्सा मोदी जी को भारी बहुमत दिला गया। ऐसा हीं राज्यों के चुनाव में भी हुआ जहाँ कांग्रेस की सरकार थी वहां जनता ने उन्हें हराया और मोदी जी के पार्टी को जिताया। जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू -कश्मीर... जहाँ लोगों के पास कांग्रेस के अलावा विकल्प था वहां बीजेपी को पसंद नहीं किया जैसे की दिल्ली और बिहार। अगर लालू जी और नीतीश जी इस जीत का श्रेय खुद को देकर एक-दूसरे का पीठ थपथपा रहे है तो गलफहमी न पाले, आपदोनो ने इतना अच्छा काम भी नहीं किया है कि लोग आपको भारी बहुमत दे बल्कि इसलिए जिताया है कि बीजेपी में निरंकुशता बढ़ रही थी, विकास के सिर्फ वादे और बड़ी-बड़ी बातें हो रही थी ...इससे परेशान होकर आपको जिताया है ताकि बीजेपी सबक सीख सके, बीजेपी को हराकर उन्हें आईना दिखाने का काम किया है। याद करें यही बिहार की जनता ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भारी समर्थन किया था। ये बात कुछ लोगों को शायद न पचे लेकिन मैं ये दावे के साथ कह रहा हूँ कि बिहारी जनता दूसरे राज्यों की जनता के अपेक्षा राजनीतिक रूप से ज्यादा जागरूक है, भले यहाँ अशिक्षा है, गरीबी है, बेरोज़गारी है। शायद बिहारी लोगों को राजनीती का पाठ विरासत में मिली है क्यों कि राजनीती शास्त्र के जनक चाणक्य की कर्म भूमि बिहार है। 

थोड़ा अजीब हो गया है वो...

कहता है, कुछ अपने लोग हैं उसके.... उन सबकी सुनता है वो... पता नहीं कैसी-कैसी बातें.. गुस्सा आता है उसे... उन सबकी बातें, उनकी करतूतें सुनकर... पर उनपर गुस्सा नहीं करता... बड़े प्यार से बातें करता है, उन्हें समझाने की कोशिश करता है.... डरता है, उनपर गुस्सा करने से....क्यों कि वो अपने हैं....लोग कहतें हैं क्या अपनों पर गुस्सा नहीं करते ? पर उसका रिश्ता इस नाज़ुक मुकाम पर है कि उसे डर लगता है कि कहीं गुस्सा इस रिश्ते के बंधन को न तोड़ दे....पी जाता है गुस्से को... इस उम्मीद पर कि आगे सब ठीक हो जायेगा.... कितना प्यारा था वो रिश्ता....बदलते रिश्ते को देख कर रोना भी आता है उसे.... कभी-कभी रोता भी है.... पर कोई आसूँ पोछने वाला भी नहीं होता.... खुद ही अपने आसूं पोछ लेता है.... इस उम्मीद से कि अभी बहुत उम्मीद बाकी है.... फिर से रिश्ते में वही प्यार वापिस ले आऊंगा....खामोश रहता है.... पर अजनबियों पर बहुत गुस्सा करने लगा है... झुंझला जाता है छोटी- छोटी बातों पर... थोड़ा अजीब हो गया है वो....


Thursday, 8 October 2015

आम आदमी पार्टी

'आम आदमी पार्टी' अब खास होती जा रही है पर अपने अच्छे कामों की वजह से नहीं बल्कि नित दिन नए-नए विवादों की वजह से। मीडिया के साथ-साथ आम लोग इस पार्टी को घटिया पार्टी और पता नहीं क्या क्या कह रहे हैं। ऐसा भी नहीं की बाकी दूसरी पार्टी बहुत सही है वो भी यही करती है जो 'आम आदमी पार्टी' करती है। बात बस इतनी सी है कि 'आम आदमी पार्टी' आम आदमी के नाम पर इतना आम हो गयी है कि कोई भी कुछ भी कहने में नहीं हिचकता। वही दूसरी ओर शिवसेना और राज ठाकरे की पार्टी कुछ भी करे या कुछ भी कहे तो न लोग कुछ कहते हैं न हैं मीडिया कुछ कहता है, न लिखता है। क्यों की उनसे लोगों को और मीडिया को डर लगता है। 'आम आदमी पार्टी' तो राजनीति में सारी पार्टियों को राजनीति सिखाने आई थी पर अब वही उनसे राजनीती सिखने लगी है और उम्मीद है जल्द हीं वो भी इनसे राजनीती सिख लेगी। 

Saturday, 12 September 2015

प्यार देने का नाम है लेने का नहीं !!!

ख़ामोश रहता है वो शख़्स... जिसकी एक आवाज़ से घर में सन्नाटा छा जाता था। जिनका कोई भी फैसला घर वालों के लिए आख़िरी फैसला हुआ करता था। आज उनके फैसले का कोई कदर नहीं। उनके फैसले से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखने वाला घर का सदस्य भी मुस्कुरा कर उनके फैसले का स्वागत किया करता था। उनके फैसलों का नतीजा हीं तो है कि आज इस परिवार का समाज और गॉव में इतना नाम है, इज़्ज़त है। आज वो शख़्स बेबस है, खामोश है, उनकी कोई नहीं सुनता, उनके फैसलों पर अचानक उँगलियाँ उठनी शुरू हो गयी है, लोगों का विश्वास उनपर से उठने लगा है। ये सच हीं कहा गया है कि वक़्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। बुढ़ापे के दहलीज़ पर आकर ये शख्स ये सोचकर कितना मन हीं मन तड़पता होगा कि जिस परिवार के ख़ातिर मैंने अपनी हज़ारों ख़्वाहिशें दफ़न की उसका नतीज़ा ऐसा हुआ।

सोचता होगा कि इस परिवार को बनाने में अपनी पुरी उम्र लगाई ताकि बुढ़ापे में सुकून और चैन की ज़िंदगी बिताएंगे। इन्होने परिवार रुपी मज़बूत पेड़ इसलिए लगाया था कि बाद में उन्हें छाया देगा पर इन्हें कहां मालूम था की इन पेड़ों को उनकी छाया की आदत पड़ जाएगी। विडंबना ये है कि लोग आज भी इस बूढ़े बरगद के पेड़ को सहारा देने के बजाय इनसे सहारा और छाँव मांगते हैं। कुछ लोग ये भी तोहमत लगाते हैं कि मुझे छाँव कम दिया। उनकी इन बातों पर ये विशाल बूढ़ा बरगद का पेड़ मंद-मंद मुस्कुराता है, ये सोचकर कि मैंने तो अपनी टहनियां फैलाकर हर किसी को बस छाँव देने की कोशिश की, खुद को धुप में जलाकर, बिना किसी स्वार्थ के, कोई ज्यादा छाँव ले गया तो इसमें मेरा क्या कसूर? किसी को ज्यादा छाँव देने से मुझे क्या फायदा? बरगद का पेड़ मायूस होता है आज भी उनकी मांग पर, पर जितना हो सकता है आज भी उनके लिए कर रहा है, आखिर उनसे प्यार जो करता है, पर बरगद को उनके प्यार से भरोसा उठता जा रहा है... दिल को तस्सली देता रहता है इस बात से कि प्यार देने का नाम है लेने का नहीं !!!

गजेन्द्र बिहारी 

Thursday, 30 July 2015

जैसे वो कोई आतंकी नही मसीहा था ...

याकूब मेमन की फांसी पर देश का एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग ऐसे हायतौबा मचा रहा है जैसे वो कोई आतंकी नहीं बल्कि कोई मसीहा था। अफ़सोस होता है इनकी बुद्धिमता पर, क्या ऐसा करके ये बुद्धिजीवी वर्ग देश को ये सन्देश देना चाहता है की देश के सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी संदिग्ध होता है? इस पर विश्वास मत करो। ऐसा करके देश में एक अविश्वास का माहौल बनाना चाहते हैं ? याकूब मेमन इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया? देश के सामने इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा कोई और नहीं है क्या? याकूब क्या इसलिए महत्वपूर्ण हो गया क्यूंकि वो इक मुस्लिम (कहने को अल्पसंख्यक) था, क्या ये बुद्धिजीवी वर्ग ये कहना चाहता है कि अल्पसंख्यकों को भारत में न्याय नहीं मिलता? भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर दोहरी नीति है? अगर ऐसा होता आज पूरा देश, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के चले जाने पर रो नहीं रहा होता। अगर याकूब भी अच्छा इंसान होता तो देश उसके बारे में ज़रूर सोचती, एक कातिल पर रहम कैसा, फिर तो डेल्ही गैंग रेप के आरोपियों पर भी रहम करनी चाहिए थी। उनके लिए ये बुद्धिजीवी वर्ग क्यों नहीं बोला। क्या इसलिए की वो अल्पसंख्यक नहीं था। ये लोग राजीव गांधी के हत्यारे, भुल्लर आदि का उदाहरण देकर याकूब को बचाना चाहते थे। अगर आपको अपनी बुद्धि पर इतना नाज़ है तो आप ये जानते हुए की याकूब दोषी है का बचाव न करके उन लोगों को सज़ा दिलाने की कोशिश करते जिनको उनके अपराध के अनुसार सज़ा नहीं मिली। इन बुद्धिजीवी वर्ग से मेरा विनम्र निवेदन हैं कि याकूब का मुद्दा छोड़ के देश में गरीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी से हर दिन मर रहे लोग या मर-मर के जी रहे लोगों का मुद्दा उठाये और उनका अपना हक़ दिलवाए। अगर वो ऐसा कर सके तो उनका देशपर बड़ा एहसान होगा।
                                                                                                         गजेन्द्र कुमार