कहता है, कुछ अपने लोग हैं उसके.... उन सबकी सुनता है वो... पता नहीं कैसी-कैसी बातें.. गुस्सा आता है उसे... उन सबकी बातें, उनकी करतूतें सुनकर... पर उनपर गुस्सा नहीं करता... बड़े प्यार से बातें करता है, उन्हें समझाने की कोशिश करता है.... डरता है, उनपर गुस्सा करने से....क्यों कि वो अपने हैं....लोग कहतें हैं क्या अपनों पर गुस्सा नहीं करते ? पर उसका रिश्ता इस नाज़ुक मुकाम पर है कि उसे डर लगता है कि कहीं गुस्सा इस रिश्ते के बंधन को न तोड़ दे....पी जाता है गुस्से को... इस उम्मीद पर कि आगे सब ठीक हो जायेगा.... कितना प्यारा था वो रिश्ता....बदलते रिश्ते को देख कर रोना भी आता है उसे.... कभी-कभी रोता भी है.... पर कोई आसूँ पोछने वाला भी नहीं होता.... खुद ही अपने आसूं पोछ लेता है.... इस उम्मीद से कि अभी बहुत उम्मीद बाकी है.... फिर से रिश्ते में वही प्यार वापिस ले आऊंगा....खामोश रहता है.... पर अजनबियों पर बहुत गुस्सा करने लगा है... झुंझला जाता है छोटी- छोटी बातों पर... थोड़ा अजीब हो गया है वो....
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