Thursday, 28 November 2013

"Know the Truth"

गरीब दूर तक चलता है..... खाना खाने के लिए......।
अमीर मीलों चलता है..... खाना पचाने के लिए......।

किसी के पास खाने के लिए..... एक वक्त की रोटी नहीं है.....
किसी के पास खाने के लिए..... वक्त नहीं है.....।

कोई लाचार है.... इसलिए बीमार है....।
कोई बीमार है.... इसलिए लाचार है....।

कोई अपनों के लिए.... रोटी छोड़ देता है...।
कोई रोटी के लिए..... अपनों को छोड़ देते है....।

ये दुनिया भी कितनी निराळी है। कभी वक्त मिले तो सोचना....

कभी छोटी सी चोट लगने पर रोते थे.... आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते है।

पहले हम दोस्तों के साथ रहते थे... आज दोस्तों की यादों में रहते है...।

पहले लड़ना मनाना रोज का काम था.... आज एक बार लड़ते है, तो रिश्ते खो जाते है।

सच में जिन्दगी ने बहुत कुछ सीखा दिया,
जाने कब हमकों इतना बड़ा बना दिया।

रोऊँ या हसूँ.... करूँ मैं क्या करूँ ??? :-p



मैं रोऊँ या हसूँ , करूँ मैं क्या करूँ ये इसलिए कह रहा रहा हूँ ... क्यूँकि आज मेरे साथ जो हुआ उसपर गुस्सा भी आता है और हंसी भी....मैं मीडिया से जुड़ा हूँ इसलिए मीडिया की बात कर रहा हूँ .....आज ऑफिस में वही हुआ जो हर रोज़ होता है ...मेरी शिफ्ट ख़त्म ही चुकी थी बल्कि हर रोज़ की तरह एक घंटे ज्यादा ही ऑफिस को दे चूका  था .....मैंने अपने बॉस से कहा कि मैं अब जा रहा हूँ ...उनका कहना था रुक जा थोड़ी देर ...मैंने कहा सर मेरी शिफ्ट ख़त्म हो चुकी है ...उनका कहना था फिर क्या हुआ ....घर जा के क्या करना है ??? कुछ काम है क्या ???..... मैंने कहा नहीं ...फिर उनका कहना था कि फिर रुक जा क्या प्रॉब्लम है ??? मैंने कहा इंसान हूँ सर थक जाता हूँ ...उनका कहना था यहाँ कोई लेबर वाला काम थोड़े हीं करवाया जाता है जो थक जाते हो .....मैंने कहा सर मानसिक रूप से तो थक ही जाता हूँ....फिर इनका कहना था अभी सीख रहे हो ज्यादा टाइम दिया करो .. फिर तो बस वही डाइलोग याद आया   " बॉस इज़ ऑलवेज राईट"  :-p  ... पर सर शायद भूल गये कि सीखने के लिए हर दिन 9 घंटे काफी होते हैं ...सब कुछ का एक डोज होता है और ओवरडोज का रिजल्ट अच्छा नहीं होता...मुझे ऑफिस में एक्स्ट्रा टाइम देने में कोई प्रॉब्लम नहीं पर अगर हर दिन आप एक्स्ट्रा टाइम दो और बदले में आपको न हीं मोटिवेशन मिले, न हीं तारीफ मिले और न ही कुछ और ...कुछ और मतलब आप समझ ही गये होंगे...  खैर कुछ और कि उम्मीद तो मैं करता ही नहीं कम से कम फ्री वाली चीज़... तारीफ तो दे दो ...पर वो भी नहीं बस बॉस का अपना काम निकालने से मतलब हैं ...बॉस ये भी नहीं समझते कि  "हम मज़बूर ज़रूर हैं मगर किसी के गुलाम नहीं"  ....अगर मेरी इस बात से बॉस नाराज़ होतें हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ...क्यूंकि इसमें मेरी कोई गलती नहीं ...  .....मीडिया लोगों के शोषण के मुद्दे बड़े जोर शोर से उठता है पर जो मीडिया में लोगों का शोषण हो रहा है ..उनकी बात कौन उठाएगा ....मैंने तो यही देखा है कि खास करके इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इंसान को इंसान नहीं समझा जाता है ......