Thursday, 16 January 2014

मीडिया में मिसाल कायम की है "The Tribune" ने


मीडिया के क्षेत्र में आकर मायूस और हतास युवा के लिए ये कोई बड़ी खुशखबरी तो नहीं लेकिन खुशखबरी ज़रूर है...क्यूँकि The Tribune अख़बार ने एक बेमिसाल कदम उठाते हुआ फैसला किया है कि ट्रिब्यून अख़बार से जुड़ने वाले फ्रेशर युवा को भी 21000 प्रति माह सैलरी दी जायेगी...जो कि मीडिया के क्षेत्र में एक मिसाल कायम किया है...आजकल युवा पत्रकार को तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी इतनी ज्यादा सैलरी के साथ शुरुआत नहीं मिलती...ये ट्रिब्यून का निश्चित ही सराहनीय कदम है...हालाँकि ट्रिब्यून सिर्फ 4 राज्य़ों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और दिल्ली से प्रकाशित होती है...लेकिन ट्रिब्यून से जुड़े पत्रकारों के लिए ये हर्ष का विषय है....कम से कम अब तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर जैसे सभी बड़े अख़बारों को ट्रिब्यून से कुछ सीख लेनी चाहिए...अगर सीख नहीं लेना चाहती तो कम से कम रहम तो ज़रूर करना चाहिए .....नहीं तो बाकी दूसरे अख़बार से जुड़े लोगों के मन में क्या भावन पैदा होगी..ये सोचने का विषय है.. मीडिया में काम कर रहे लोगों कि क्या स्थिति है ये बाहरी लोग कम ही जानते हैं लेकिन मीडिया से जुड़े लोगों को तो अच्छी तरह मालूम है...अगर एक अखबार पत्रकारों के बारे में कुछ अच्छा सोच सकता है तो फिर सारे अखबार वाले ऐसा क्यूँ नहीं सोचते ??? ..अगर नहीं सोचते तो पत्रकारों को आवाज़ उठानी चाहिए ...अपने हक़ के लिए लड़ना चाहिए...सरकार दवारा बनाई गई "Working Journalist Act 1955"  लागू करने की मांग करनी चाहिए,  जिसमें पत्र्कारों के हित की बात की गयी है...कब तक चुप बैठोगे ???  दूसरों की आवाज़ बनने वाले, हिम्मत करो और अपनी आवाज़ बुलंद करो ....और ये सिर्फ प्रिंट मीडिया के लिए हीं नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भी है ...जब एक प्रिंट मीडिया में एक युवा पत्रकारों को सम्मानजनक सैलरी मिल सकती है तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में क्यूँ नहीं मिल सकती...इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तो काम और भी ज्यादा लिया जाता है....आवाज़ उठाओ ...plzzzzzzzzzzz

                                                                                                             गजेन्द्र कुमार 

Wednesday, 15 January 2014

कौन बनेगा मीडिया के लिए " केजरीवाल "....

कौन बनेगा मीडिया के लिए " केजरीवाल "

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले कुछ महीनों में कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिससे भारत के मायूस और नाउम्मीद लोगों में उम्मीद और ख़ुशी की लहर दौड़ा गई है.. खैर ये तो वक़्त हीं बतायेगा कि केजरीवाल लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरतें हैं,  पर दुःख की बात तो ये है कि देश का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया भी आज मायूसी और हतासा के दौर से गुज़र रहा है... मीडिया से जुड़े लोग काफी हतास और हीनभावना से ग्रस्त होते जा रहे हैं ...खासकर वो लोग जो पिछले कुछ सालों में मीडिया से जुड़े हैं...आज के युवा पत्रकार जो भी मीडिया से जुड़ रहा है वो खुश नहीं.... क्यूंकि उनसे काम नहीं लिया जाता बल्कि उनका शोषण किया जाता है... उनसे ये कहा जाता है कि आपके ऑफिस आने का तो टाइम होगा पर जाने का कोई टाइम नहीं होगा यानि आप कितने घंटे काम करोगे ये निश्चित नहीं और ये एक दिन के लिए नहीं बल्कि हर दिन के लिए होता है...इतने घंटे काम करने के बावज़ूद इन्हें कोई मोटिवेशन नहीं मिलता...बेरोज़गारी से मज़बूर युवा अपने बॉस की हर सही-गलत बात खमोशी के साथ सह लेता है...इसके बाद उन्हें सैलेरी क्या मिलती है ???  किसी को 10 हज़ार तो किसी को 12 हज़ार तो किसी को 15 हज़ार ...बेचारे को दिल्ली जैसे शहर में काम करने के बाद भी दिल्ली में रहने के लिए घर से पैसे मांगने पड़ते हैं या फिर जो घर से नहीं मांगते हैं वो कैसे अपना गुज़ारा करते हैं ये देखकर आपके दिल पसीज जायेंगे...वो बेचारे अपने घर वालों को क्या पैसे देंगे ...इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी की कोई नौकरी करे इसके बावज़ूद घर से पैसे मांगने पड़े...इतनी पढाई के बाद भी इनकी इतनी बुरी हालत है...इससे ज्यादा तो एक अनपढ़ मज़दूर हर महीने मज़दूरी करके कमा लेता है...इन वजहों से आज का युवा पत्रकार हीनभावना से ग्रस्त हो रहा है...ये बातें तो युवा पत्रकारों की है जो आज की दौर में मीडिया में जा रहे हैं ....मीडिया के वो लोग भी खुश नहीं हैं जो कई वर्षों से मीडिया के क्षेत्र में काम कर हैं ...कई वर्षों से काम कर रहे ज्यादारतर पत्रकारों इस ताक में रहते हैं की उन्हें टीचिंग के क्षेत्र में जॉब मिल जाये...उनके सामने टीचिंग का विकल्प आते हीं मीडिया का क्षेत्र छोड़ने में जरा भी देर नहीं करते और पढाने का काम शुरू कर देते हैं...यानि कई वर्षों से मीडिया में काम से कर रहे पत्रकार भी मीडिया में काम करने के तौर-तरीके से परेशान हैं...पर सोचने वाली बात ये है कि जो पत्रकार मीडिया का फील्ड छोड़ कर टीचिंग में आ रहे हैं ...क्या वो अपने स्टूडेंट का वही हाल होता देखकर खुश हो पाएंगे जो उन्होंने झेल है ??? अगर उनलोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता तो ये अलग बात बात है...सबसे ज्यादा दुःख वाली बात ये है कि लोगों को जागरूक करने वाला मीडिया ,लोगों की आवाज़ बनने वाला मीडिया...लोगों की शोषण के खिलाफ खड़ा होने वाला मीडिया...खुद जागरूक नहीं है,,खुद पर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा रहा...परेशान हर पत्रकार है ..पर अगर किसी से आवाज़ उठाने के लिए कहो तो उनका जवाब होगा ..यार यहाँ तो यही चलता है..लाख कोशिश कर लो कुछ नहीं बदलने वाला...और फिर चुप-चाप हर ज्यादतियों को सह जाते हैं....तभी को कह रहा हूँ कोई मीडिया के लिए भी "केजरीवाल"  बने , जो इनकी दबी आवाज़ को बुलंद कर सके ...मीडिया की कलम खरीद ली गयी है और मीडियाकर्मियों की आवाज़ गुलाम हो चुकी है ...मेरा तो कहना है की ज़िल्लत की नौकरी से कही अच्छी है बेरोज़गारी ...कम से कम किसी का गुलाम तो नहीं....मज़े की बात तो ये है की सरकार ने बहुत पहले हीं पत्रकारों के लिए working journalist act 1955 बनाया था लेकिन दुर्भागय है की कोई मीडिया आर्गेनाईजेशन इसे नहीं मानता ..यही वजह है की आज पत्रकारों की इतनी बदतर हालत है ...working journalist act 1955 के तहत एक पत्रकार के काम करने के घंटे से लेकर उनकी तन्खाह तक की बात कही गयी है ...अगर आज भी इस एक्ट को फॉलो किया जाये तो पत्रकारों की हालत बदल सकती और फिर मीडिया की हालत भी बदल जायेगी...ज़रूरत है बस इक ऐसे शख्स की जो मीडिया वालों की आवाज़ बुलंद कर सके .. मेरा दावा है कि अगर कोई एक व्यक्ति भी आवाज़ उठाएगा तो उसके साथ हज़ारों हाथ खड़े हो जायेंगे...क्योंकि आज मीडिया के काम करने के रवैये और तौर-तरीके से हर कोई परेशान है...अगर किसी को फायदा हो रह है तो बस मीडिया आर्गेनाईजेशन के मालिकों को ....

वैसे देश के आगामी प्रधानमंत्री के बनने का सपना देख रहे पप्पू और फेकू जी से भी कहना चाहूंगा कि मीडिया कर्मियों का दर्द समझते हुए, अपने घोषणा पत्र में मीडिया के हक़ के बारे में चर्चा करें...जो भी मीडिया के हक़ के बारे में बात करेगा , उसकी जीत पक्की समझो , क्यूँकि फिर तो वो मीडिया वालों के चहेते हो जायेंगे ...और आप दोनों मीडिया के पावर को अच्छी तरह समझते हैं ...मेरी तरफ से ये मशविरा मुफ्त में ...तो देर किस बात कि जल्दी आप मीडिया के लिए केजरीवाल बनो ...जय हो ..:-P
                                                                           
                                                                                             गजेन्द्र कुमार 

Monday, 6 January 2014

बस यूँ हीं ...

प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के चैयरमेन जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने करीब दो साल पहले ये बात कही थी कि ज्यादातर जर्नलिस्ट का  इन्टलेक्चूअल लेवल कम है...ज्यादातर जर्नलिस्ट एम.ए, या फिर बी.ए तक कि पढ़ाई कर इस फील्ड में आ जाते है .... इस बात से तब मैं समय सहमत नहीं था, लेकिन अब उनकी  बातों से मैं इतेफाक रखता हूँ ....हालांकि मीडिया में मेरा अनुभव काफी कम है ...पर मैं ये अब कह सकता हूँ कि काटजू साहब आप सही थे...एक मीडिया आर्गेनाइजेशन में मेरे 4 महीने के काम के दरमियान 8 बार पूछा गया कि आप चैनल में काम क्यूँ करना चाहते हो ...जबकि आप UGC NET क्वालिफाइड हो, आपके पास Mphil कि डिग्री है ....हमेशा मुझे शक कि निगाह से देखा गया...मुझे तो ऐसा लगने लगा कि मैंने थोड़ी सी  ज्यादा क्वालिफिकेशन लेकर गुनाह कर दिया हो....मेरे कहने का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि उच्च शिक्षा बुद्धिमता की गारंटी है ...कई ऐसे लोग हैं मीडिया में, जो कम शिक्षा के बावज़ूद बहुत अच्छे काम कर रहे हैं , लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं होना चाहिए कि जिनके पास उच्च शिक्षा है वो मीडिया में न आये...कहीं ऐसा तो नहीं कि इनके आने से मीडिया के गुणवता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ??? ...मुझे तो ऐसा नहीं लगता ....उच्च शिक्षा ग्रहण कर मीडिया से जुड़ने वाले लोग बहुत कम हैं ....आखिर क्या कारण है जिसके वजह से उच्च शिक्षा वाले लोग मीडिया आर्गेनाईजेशन से जुड़ना नहीं चाहते या फिर जुड़ने के बाद उससे अपने आप को छुडाना चाहते है ???...अगर मीडिया को विश्वसनीय और जिम्मेदार बनाना है तो इन सवालों के जवाब हमें ढूंढने होंगे ...

गजेन्द्र कुमार