Monday, 6 January 2014

बस यूँ हीं ...

प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के चैयरमेन जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने करीब दो साल पहले ये बात कही थी कि ज्यादातर जर्नलिस्ट का  इन्टलेक्चूअल लेवल कम है...ज्यादातर जर्नलिस्ट एम.ए, या फिर बी.ए तक कि पढ़ाई कर इस फील्ड में आ जाते है .... इस बात से तब मैं समय सहमत नहीं था, लेकिन अब उनकी  बातों से मैं इतेफाक रखता हूँ ....हालांकि मीडिया में मेरा अनुभव काफी कम है ...पर मैं ये अब कह सकता हूँ कि काटजू साहब आप सही थे...एक मीडिया आर्गेनाइजेशन में मेरे 4 महीने के काम के दरमियान 8 बार पूछा गया कि आप चैनल में काम क्यूँ करना चाहते हो ...जबकि आप UGC NET क्वालिफाइड हो, आपके पास Mphil कि डिग्री है ....हमेशा मुझे शक कि निगाह से देखा गया...मुझे तो ऐसा लगने लगा कि मैंने थोड़ी सी  ज्यादा क्वालिफिकेशन लेकर गुनाह कर दिया हो....मेरे कहने का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि उच्च शिक्षा बुद्धिमता की गारंटी है ...कई ऐसे लोग हैं मीडिया में, जो कम शिक्षा के बावज़ूद बहुत अच्छे काम कर रहे हैं , लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं होना चाहिए कि जिनके पास उच्च शिक्षा है वो मीडिया में न आये...कहीं ऐसा तो नहीं कि इनके आने से मीडिया के गुणवता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ??? ...मुझे तो ऐसा नहीं लगता ....उच्च शिक्षा ग्रहण कर मीडिया से जुड़ने वाले लोग बहुत कम हैं ....आखिर क्या कारण है जिसके वजह से उच्च शिक्षा वाले लोग मीडिया आर्गेनाईजेशन से जुड़ना नहीं चाहते या फिर जुड़ने के बाद उससे अपने आप को छुडाना चाहते है ???...अगर मीडिया को विश्वसनीय और जिम्मेदार बनाना है तो इन सवालों के जवाब हमें ढूंढने होंगे ...

गजेन्द्र कुमार 

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