Sunday, 8 November 2015

बिहार विधान सभा चुनाव...

बिहार विधान सभा चुनाव में महागठबंधन की बड़ी जीत का श्रेय लालू यादव और नीतीश कुमार लेकर खुश हो रहे हैं पर मैं तो उनसे यही कहना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री मोदी जी की तरह आप भी इस गलफहमी में मत रहना कि आप दोनों की लहर चल पड़ी है। लोकसभा में मोदी जी की जीत की वजह मोदी लहर नहीं था बल्कि मनमोहन सरकार का खराब प्रदर्शन था। लोग सबसे ज्यादा करप्शन से परेशान थे लोग हर हाल में कांग्रेस से छुटकारा पाना चाहते थे और ऐसे में लोगों के पास बीजेपी के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। लोगों का कांग्रेस के प्रति गुस्सा मोदी जी को भारी बहुमत दिला गया। ऐसा हीं राज्यों के चुनाव में भी हुआ जहाँ कांग्रेस की सरकार थी वहां जनता ने उन्हें हराया और मोदी जी के पार्टी को जिताया। जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू -कश्मीर... जहाँ लोगों के पास कांग्रेस के अलावा विकल्प था वहां बीजेपी को पसंद नहीं किया जैसे की दिल्ली और बिहार। अगर लालू जी और नीतीश जी इस जीत का श्रेय खुद को देकर एक-दूसरे का पीठ थपथपा रहे है तो गलफहमी न पाले, आपदोनो ने इतना अच्छा काम भी नहीं किया है कि लोग आपको भारी बहुमत दे बल्कि इसलिए जिताया है कि बीजेपी में निरंकुशता बढ़ रही थी, विकास के सिर्फ वादे और बड़ी-बड़ी बातें हो रही थी ...इससे परेशान होकर आपको जिताया है ताकि बीजेपी सबक सीख सके, बीजेपी को हराकर उन्हें आईना दिखाने का काम किया है। याद करें यही बिहार की जनता ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भारी समर्थन किया था। ये बात कुछ लोगों को शायद न पचे लेकिन मैं ये दावे के साथ कह रहा हूँ कि बिहारी जनता दूसरे राज्यों की जनता के अपेक्षा राजनीतिक रूप से ज्यादा जागरूक है, भले यहाँ अशिक्षा है, गरीबी है, बेरोज़गारी है। शायद बिहारी लोगों को राजनीती का पाठ विरासत में मिली है क्यों कि राजनीती शास्त्र के जनक चाणक्य की कर्म भूमि बिहार है। 

थोड़ा अजीब हो गया है वो...

कहता है, कुछ अपने लोग हैं उसके.... उन सबकी सुनता है वो... पता नहीं कैसी-कैसी बातें.. गुस्सा आता है उसे... उन सबकी बातें, उनकी करतूतें सुनकर... पर उनपर गुस्सा नहीं करता... बड़े प्यार से बातें करता है, उन्हें समझाने की कोशिश करता है.... डरता है, उनपर गुस्सा करने से....क्यों कि वो अपने हैं....लोग कहतें हैं क्या अपनों पर गुस्सा नहीं करते ? पर उसका रिश्ता इस नाज़ुक मुकाम पर है कि उसे डर लगता है कि कहीं गुस्सा इस रिश्ते के बंधन को न तोड़ दे....पी जाता है गुस्से को... इस उम्मीद पर कि आगे सब ठीक हो जायेगा.... कितना प्यारा था वो रिश्ता....बदलते रिश्ते को देख कर रोना भी आता है उसे.... कभी-कभी रोता भी है.... पर कोई आसूँ पोछने वाला भी नहीं होता.... खुद ही अपने आसूं पोछ लेता है.... इस उम्मीद से कि अभी बहुत उम्मीद बाकी है.... फिर से रिश्ते में वही प्यार वापिस ले आऊंगा....खामोश रहता है.... पर अजनबियों पर बहुत गुस्सा करने लगा है... झुंझला जाता है छोटी- छोटी बातों पर... थोड़ा अजीब हो गया है वो....