हाथों में तो हमेशा खुजली होते रहती है कुछ लिखने के लिए पर वक़्त नहीं मिलता ...काफी दिनों बाद वक़्त मिला तो सोचता हूँ कुछ लिख ही दूँ....अरे हाँ एक बात तो मैंने अपने बारे में बताना भूल ही गया ...आजकल मुझे आँखों में भी खुजली हो रही इसके चलते मेरी आँखों के नीचे थोड़ी सूज़न भी आ गयी है...आँखों के नीचे सूजन क्यूँ होती है ये बताने कि ज़रूरत नहीं है ...आप तो खुद हीं समझदार हैं ...:P .....चलिए छोड़िए ज्यादा मत सोचिए....अब मुद्दे पर आते हैं ....बात करते हैं "आम आदमी पार्टी" की ...दिल्ली में जिस तरह से "आप" ने धमाकेदार एंट्री मारी है उससे हर कोई दंग है....चुनाव के नतीज़े आने से पहले पता नहीं क्या-क्या कहा जा रहा था ...कोई कहता की ये पार्टी तो वोट कटवा पार्टी है...तो कोई कहता ये "आप" का पहला और आखिरी चुनाव है ...यहाँ तक की मीडिया ने भी "आप" का साथ छोड़ दिया था ...क्यूँ की आजकल के मीडिया का तो पता ही हैं आपको ना....लेकिन "आप" ने खामोश क्रांति की तरह अपने लिए एक दमदार लहर तैयार किया...और सबको पटखनी दे दी ....आप की जीत की वजह ये भी है की आम जनता ...कांग्रेस और बीजेपी दोनों नेशनल पार्टियों से तंग आ चुकी थी...जनता जानती है की दोनों चोर-चोर मौसेरे भाई हैं ....यही वजह है की जनता ने एक तीसरी पार्टी पर भरोसा जताया है ....इस जीत ने जता दिया है की आम आदमी की आम आदमी पार्टी से कितनी उम्मीद हैं ...क्या पार्टी इनकी उमीदों पर खरा उतर पायेगी ??? ये सबसे बड़ा सवाल है ....इनकी उमीदों को पूरा करना आसान नहीं है ....इससे भी बड़ी चुनौती है कि ....क्या आप अपनी इस बड़ी कामयाबी को पचा पायेगी ??? कहीं इनकी पार्टी के लोगों में भी अब आम से खास बनने कि चाहत ना पैदा हो जाये ...ये भी आज के नेताओं कि तरह कही नेतागिरी को पेशा तो नहीं बना लेंगें ???....थोड़े समय में अमीर बनने कि चाह तो नहीं पैदा हो जायेगी ???...कहीं इन्हें पावर का घमंड तो नहीं हो जायेगा ???... क्या "आम आदमी पार्टी" आम रह पायेगी ??? इस तरह के कई सवाल खड़े होतें हैं ...आगे तो वक़्त ही बतायेगा पर उम्मीद करता हूँ कि मेरे इन सवालों का जवाब ना में हीं होगा .....
गजेन्द्र कुमार