Wednesday, 26 March 2014

बस यूँ हीं ...

बिहार-पंजाब-दिल्ली-पंजाब-दिल्ली....
बंजारा बन चुकी है मेरी ये ज़िदगी
पता नहीं कहां-कहां जाना बाकी है अभी
दिल बार-बार टूट जाता है,
मत करना किसी शहर से कभी दिल्लगी।
                              गजेन्द्र कुमार 

बस यूँ हीं ...

               क्या खुद से दूर कर देगा वो मुझे ? बस इतनी देर का साथ था ? क्या वो सच में मेरा साथ छोड़ देगा ? क्या मेरे छोड़ने का दुख उसे नहीं होगा ?...कई सवाल हैं मेरे जेहन में हैं...और मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि वो मुझे चाहता है, पसंद करता है, प्यार करता है।  कहां जानता था मै उसको..बिल्कुल अंजान था मैं, पहली दफ़ा जब उससे मुलाकात हुई तो मै काफी सहमा और डरा हुआ था। मुझे लगता था हमारी बीच कभी दोस्ती नहीं हो पायेगी। दोनों बिल्कूल अलग थे, मेरी बोली अलग, भाषा अलग, रहन-सहन अलग, खान-पान अलग। शुरूआत में मै रोया भी करता था तब कोई आंसू पोछने वाला भी नहीं था। पर शायद वो कहीं लुक-छुप कर मुझे निहारा करता था। मेरा रोना इसे अच्छा नहीं लगा था शायद, या फिर मुझमें कुछ अच्छा लगा होगा उसे। तभी तो उसने मुझे धीरे-धीरे समझने की कोशिश की और जल्दी हीं हमारे बीच दोस्ती हो गई। हमारे बीच प्यार पनप बैठा। मै नहीं जानता था कि हमारी दोस्ती का साथ इतने लंबे समय तक रहेगा। मै एहसानमंद हूं इसका, इसने मुझे बहुत कुछ दिया है और सिखाया है। हर कदम पर साथ दिया है, जहां मै हार मान लेता था वहां हौसला दिया है। मै बहुत ही जज्बाती, मासूम और नादान था। इसने मुझे इन्हीं तीनों कमज़ोरियों को मेरा हथियार बनाना सिखाया। मुझे इसने कठिन से कठिन परिस्थितियों से लड़ना सिखाया, मुश्किल घड़ी में भी मुस्कुराना सिखाया। सही मायने में ज़िदगी क्या होती है और ज़िदगी कैसी जी जाती है, इसी ने सिखाया। मैं तो इस दोस्ती से आज़ाद होना चाहता था, इसे छोड़ना चाहता था, मैं वापिस जाना चाहता था। लेकिन इसने बार-बार मुझे अपनी ओर खींच लिया और मैं भी ना न कर सका। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता कायम हो गया जिसमें सिर्फ प्यार हीं प्यार था। विश्वास इतना की हमारे बीच शक कभी आने की हिम्मत भी नहीं करता। हमारे बीच प्यार जो इतना बढ़ गया था। इस प्यार में मै एक ग़लतफ़हमी भी पाल बैठा था कि हमदोनों का साथ कभी नहीं छुटेगा। एक बार पहले भी ज़माने ने हमें तोड़ने की कोशिश की थी लेकिन इससे मेरी दूरी सही नहीं गयी और मुझे फिर से अपने पास बुला लिया। एकबार फिर हमें दूर करने की साज़िश हो रही है, क्या इस बार ये कामयाब हो जाऐंगे ? हमारे वर्षों का साथ अब टूट जाएगा ? मैनें बड़ी कोशिश की है साथ निभाने की पर नाकामयाब रहा। पर हार मानने वालों में से नहीं हूं मै, कोशिश करता रहूंगा। बस तू मेरा साथ मत छोड़ना.....

                                                       तुम्हारा गजेन्द्र कुमार

Saturday, 22 March 2014

बस यूँ हीं ...

वो रोती रही और मै मुस्कुराता रहा...बड़ा कठिन होता है वो पल....जब किसी अपने को ऐसा इल्म हो कि अब उसकी ज़िदगी की डोर शायद छुटने वाली है...और वो आपके गले से लिपटकर फफक-फफक कर रो रहा हो...उसकी आंखों की नमी से आपकी कमीज़ गीली हो रही हो...उसके रूंधे हुए गले से निकलती सिसकती आवाज़ और बार-बार आपके गालों को चूमना...उसके हाथों का ऐसा जकड़न कि जैसे वो तुम्हें छोड़ना ही ना चाहे....आंखों में छलकता आपके लिए प्यार और उसकी ज़िदगी मिट जाने का भय....इन सब के बावजूद उसके सर पर हाथ सहलाते हुए, गीली हो चुकी आंखों के अश्कों को उंगलुओं से पोंछते हुए और अपने मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ हौसला देना और कहना कि अरे कुछ नहीं हुआ है...सब ठीक हो जाएगा...बेकार का डर रही हो...हंसते रहो कुछ नहीं होगा...ज़िदगी का नाम रोना नही है..ज़िदगी का नाम हंसना है...रोने से कुछ अच्छा नहीं होगा बल्कि हंसने से सब अच्छा होगा... इन परिस्थितियों में मुस्कुराते हुए किसी को हौसला देना कितना मुश्किल है ये मैंने पहली बार एहसास किया...वो रोती रही और मै मुस्कुराता हुआ ये बातें कहता रहा...दिल में घुमड़ते बादल को रोकने का इतना हौसला कहां से आया, ये मुझे नहीं पता..शायद मेरी इस छोटी सी ज़िदगी में आए उतार-चढ़ाव ने मुझे अब इतना कठोर तो बना ही दिया है कि विकट परिस्थितियों में भी मुस्कुराने की अच्छी एक्टिंग कर सकुं। ये हुनर बड़े काम का है...

      मेरा ये छोटा सा फ़िल्मी लेक्चर पता नहीं उसे अच्छा लगा हो या ना... फ़िल्मी लेक्चर हीँ सही पर हकीकत भी तो यही है ना, ज़िदगी तो जीना ही है ना..चाहे कुछ भी हो...ज़िदगी से हार मानना कायरता है...हालांकि ज़िदगी की ऐसी परिस्थितियों में मुस्कुराना कितना मुश्किल है ये मै जानता हूं, लेकिन और कोई रास्ता भी तो नहीं...ज़िदगी का नाम तो हंसना है ये मै मानता हूं और हंसने की कोशिश करते रहना चाहिए...

          दुख, बेबसी, मज़बूरी....ज़िदगी के डगर पर जब तीनों से एक साथ सामना हो तो इंसान टूट सा जाता है और फिर उसके जुबां से बस एक हीं शब्द निकलता है...अब तो बस भगवान हीं कुछ कर सकता है...मै नहीं जानता भगवान नाम की कोई चीज़ है भी या नही... पर ऐसा कहने से दिल को थोड़ी तसल्ली और मन को संतोष ज़रूरी मिलता है। इन परिस्थितियों में अगर कोई काम की चीज़ है तो वो है हौसला, और मैने अपने मुस्कुराते हुए चेहरे से यही देने की कोशिश की...


आजमाती है हर पग पर मुझको
ज़िन्दगी इतनी आसान नही है.......