Thursday, 19 February 2015

'मांझी' बनी बीजेपी...

बिहार में जीतन राम मांझी की डूबती नैया को पार लगाने के लिए लिए बीजेपी मांझी बनी, पर डूबती नैया को डूबने से नहीं बचा पायी। बीजेपी मांझी जी के इस अपमान को पुरे महादलित समाज का अपमान बता रही है। बीजेपी ये भी कह रही है की वो महादलितों के साथ है, क्या महादलित समाज मांझी जी की डूबती नैया पार न लगाने के बाद भी बीजेपी पर भरोसा कर पायेगी ? या फिर महादलित समाज बीजेपी के साथ को इक राजनितिक पैतरा समझेगी ? ये बड़ा सवाल है...

आजकल "कुमार" पर "सिंह" भारी पड़ रहा है ...

जिस तरह आजकल प्रधानमंत्री 'नरेंद्र मोदी' जी के सूट को लेकर बेमतलब काफी बवाल हो रहा रहा है, उसी तरह पिछले कुछ दिनों से ऐसे हीं कुछ बेमतलब के कारणों से मुझे भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। जिस तरह मोदी जी के सूट को लेकर विपक्षी पार्टी ने बेवजह तूल दिया उसी तरह मेरे साथ भी किसी अच्छे आर्गेनाईजेशन के पत्रकार ने सस्ते में नाम कमाने के लिए बेवजह मेरी किसी बात को इतना तूल दिया कि
आखिकार मुझे नोटिस थमा दिया गया। इतना हीं नहीं इस नोटिस में मेरे सर नेम "कुमार' की जगह "सिंह" लिखा गया। ताज़्ज़ुब होता है कि मुझे लोग अक्सर पंजाब में पढाई के दौरान 'कुमार' की जगह 'सिंह' बुलाने की गलती कर बैठते थे पर अब यहाँ भी ऐसा हो रहा है। अब मैं सोचता हूँ कि क्या मैं वाक़ई एक बिहारी से पंजाबी में कन्वर्ट हो गया हूँ.. हा हा हा.. अब तो इस 'कुमार' पर 'सिंह' जी भारी पड़ रहे हैं। अगर मैं अपनी बात को पत्रकार रवीश कुमार के स्टाइल में ख़त्म करूँ तो कुछ यूँ लिखना पड़ेगा।

अरे दिपुआ, ई नोटिसवा तो हमारा मिल गेलै, पर हमर गलतिया का हलै रे ???  

Tuesday, 10 February 2015

केजरीवाल की पार्टी का दिल्ली चुनाव में धमाकेदार जीत भारतीय राजनीती की नई शुरुआत है, कहना जल्दीबाज़ी होगा..

अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में जिस भारी बहुमत से जीत दर्ज़ की है वो ये भी दर्शाता है की आम लोगों की इस पार्टी से बहुत उम्मीद है। अब देखना ये होगा की आम आदमी पार्टी लोगों की उम्मीदों के बोझ तले दब कर रह जाती है या फिर उनके उम्मीदों पर खरा उतरती है। लोकसभा चुनाव में मोदी जी को जनता ने पूर्ण बहुमत देकर उम्मीदों के बोझ से लादा था और ऐसा लगता है मोदी जी की सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उत्तर रही है तभी तो दिल्ली विधान सभा चुनाव के रण में मोदी जी के कूदने के बाद भी बीजेपी का सूपड़ा साफ़ होते- होते बचा। अगर केजरीवाल की सरकार भी सिर्फ वादों को कागज़ पर हीं सुशोभित करके रखेगी तो उसका भी अंजाम बुरा होगा। अभी सरकार बनी भी नहीं है लेकिन कुछ लोग ये कहना शुरू कर चुके हैं कि केजरीवाल ने जो वादे किये हैं उसको पूरा करना आसान नहीं होगा , उसकी एक वजह लोग ये भी मान रहे हैं की केंद्र में बीजेपी की सरकार है और लोग ऐसा मान रहे हैं की बीजेपी सहयोग नहीं करेगी बल्कि परेशान करेगी ताकि केजरीवाल अपना वादा पूरा न कर सके और लोगों के सामने किरकिरी हो। आगे क्या होगा ये तो कोई नहीं जानता लेकिन इतना पता है कि, कुछ भी हो लोगों से किये वादें पुरे होने चाहिए, कोई बहाना नहीं चाहिए। अगर बहाना हीं बनाना था तो ये वादे क्या लोगों को मूर्ख बनाने के लिए किया था ?  लोगों को बहाना नहीं, काम चाहिए। अगर केजरीवाल अपने सारे वादे पूरा करते हैं तभी हम कह सकतें हैं की भारत में नई राजनीती की शुरुआत हुई है, वरना कोरे वादे तो भारतीय राजनीती का चलन (प्रथा) है. 

दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद "चाय पर चर्चा"

चाय पीने के दौरान एक चाय वाले ने कहा कि 'एक चाय वाले' में तानाशाही आ गयी थी, अब कुछ सबक मिलेगा उसे। अगर इसके बाद भी कुछ नहीं सीखा तो जायेगा।

मेरे जाते- जाते कहने लगा बाबूजी, देर से हीं सही सच और ईमानदारी की जीत होती है, आज मैं मान गया.

ये चाय वाला दूसरे 'चाय वाले' के बारे में कितना सही है ये तो मैं नहीं कह सकता पर एक चाय वाले की दूसरे 'चाय वाले' से शिकायत ज़रूर थी की वो हमें अब भूलने लगा है....

Friday, 6 February 2015

बस यूँ हीं ...

कभी-कभी रो लेना भी अच्छा होता है,
दिल और आँख दोनों साफ़ हो जाते हैं ...

देश चलाना आसान है पर घर चलाना नहीं..