अरविन्द केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में जिस भारी बहुमत से जीत दर्ज़ की है वो ये भी दर्शाता है की आम लोगों की इस पार्टी से बहुत उम्मीद है। अब देखना ये होगा की आम आदमी पार्टी लोगों की उम्मीदों के बोझ तले दब कर रह जाती है या फिर उनके उम्मीदों पर खरा उतरती है। लोकसभा चुनाव में मोदी जी को जनता ने पूर्ण बहुमत देकर उम्मीदों के बोझ से लादा था और ऐसा लगता है मोदी जी की सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उत्तर रही है तभी तो दिल्ली विधान सभा चुनाव के रण में मोदी जी के कूदने के बाद भी बीजेपी का सूपड़ा साफ़ होते- होते बचा। अगर केजरीवाल की सरकार भी सिर्फ वादों को कागज़ पर हीं सुशोभित करके रखेगी तो उसका भी अंजाम बुरा होगा। अभी सरकार बनी भी नहीं है लेकिन कुछ लोग ये कहना शुरू कर चुके हैं कि केजरीवाल ने जो वादे किये हैं उसको पूरा करना आसान नहीं होगा , उसकी एक वजह लोग ये भी मान रहे हैं की केंद्र में बीजेपी की सरकार है और लोग ऐसा मान रहे हैं की बीजेपी सहयोग नहीं करेगी बल्कि परेशान करेगी ताकि केजरीवाल अपना वादा पूरा न कर सके और लोगों के सामने किरकिरी हो। आगे क्या होगा ये तो कोई नहीं जानता लेकिन इतना पता है कि, कुछ भी हो लोगों से किये वादें पुरे होने चाहिए, कोई बहाना नहीं चाहिए। अगर बहाना हीं बनाना था तो ये वादे क्या लोगों को मूर्ख बनाने के लिए किया था ? लोगों को बहाना नहीं, काम चाहिए। अगर केजरीवाल अपने सारे वादे पूरा करते हैं तभी हम कह सकतें हैं की भारत में नई राजनीती की शुरुआत हुई है, वरना कोरे वादे तो भारतीय राजनीती का चलन (प्रथा) है.
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