बँटवारा एक ऐसा शब्द है जिससे आजतक किसी का हित नहीं हुआ है. अब तेलंगाना आन्ध्र प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य बनने जा रहा है...लोगों का तर्क है कि छोटे राज्य बनने से राज्य का विकास ज्यादा होगा ...२००० में इसी तरह तीन नये राज्य बने थे झारखण्ड, उत्तराखंड तथा छत्तीसगढ़...इन राज्यों के बने हुए १३ साल हो गये और इनका कितना विकास हो गया ये हम सभी जानते हैं...अगर छोटा राज्य विकास का पैमाना होता तो फिर छोटे राज्य विकास में सबसे आगे होते पर ऐसा बिलकुल नहीं है... अगर छोटे राज्य या छोटे क्षेत्र होना ही विकास की गारंटी होती तो भारत के बंटवारे के बाद आज पाकिस्तान विकास में हमसे काफी आगे होता, उसी तरह बांगलादेश को भी भारत से आगे होना चाहिए था और भारत को चीन से आगे होना चाहिए था पर क्या ऐसा है नहीं ना ...राज्य या देश का विकास अच्छे प्रशासन और अच्छी नीतियों से होता है ना की राज्यों को बांटकर छोटा करने से .. ये राजनेता अपने हित को देखकर नये राज्यों का निर्माण कर देते हैं... आकड़ों की बाजीगरी दिखाकर लोगों के सामने ऐसे आंकड़े पेश करतें हैं कि वाकई ऐसा लगता है की छोटे राज्य बनने से राज्य का विकास हो रहा पर क्या वाकई ये सच्चाई है, मुझे तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता क्यूँकि लोगों को आज भी गरीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है... आकड़ों की बाजीगरी ही है कि २८ रूपये कमाने वाले को सरकार गरीब नहीं मानती ...बंटवारे हमारे परिवार के बीच भी होतें है और बँटवारा बहुत दुखदायी होता है ..बँटवारा अपनों के बीच नफरत पैदा करती हैं, बटवारे के बाद हम स्वार्थी हो जाते हैं...हम दूसरों के बारे में सोचना बंद कर देते हैं... पाकिस्तान के बंटवारे ने लोगों को कितना दुःख दिया , इतनी नफरत पैदा की कि आज भी पाकिस्तान को हम अच्छी नज़र से नहीं देखते..शहरों में विकास तेज़ी के साथ हो रहा है यहाँ का परिवार भी काफी छोटा होता और लोगों का दूसरे लोगों के साथ कितना संपर्क होता है और ये लोग दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ये हमें पता हैं....तेलंगाना राज्य की मंजूरी मिलने के बाद कई प्रदेशों में कई और नये राज्यों की मांग जोर पकड़ रही है... पश्चिम बंगाल से गोरखालैंड, महाराष्ट्र से विदर्भ, बिहार से मिथलांचल की माग हो रही है तथा उत्तरप्रदेश को चार राज्यों में बटने की मांग हो रही है...ऐसा नहीं था की सरकार को इस बात की आशंका नहीं थी पर सरकार को तो समय देखकर अपना हित ही देखना होता है ना...भुगतना तो आम आदमी को पड़ता है ...मैं तो बस इतना जनता हूँ कि बंटवारा किसी भी समस्यां का समाधान नहीं है...ये तो बस लोगों को भाषा, धर्म और जाती के नाम पर बंटा जा रहा है,, जो लोगों के बीच नफरत तथा वैर का बिष घोल रही है...
गजेन्द्र कुमार