Saturday 27 July 2013

एक चिट्ठी माँ के नाम .......

मेरी प्यारी माँ ,
                   सादर प्रणाम .

                  माँ, यूँ तो तुम हमेशा याद आती हो पर कभी-कभी बहुत ज्यादा याद आती हो. खासकर तब, जब मैं यहाँ भूखा होता हूँ और कोई पूछने तक नहीं आता कि खाना खाया की नहीं और एक तुम हो जो की भूखे नहीं होने पर भी बार-बार खाने के लिए कहती थी. बार-बार खाने के लिए पूछने के कारण मैं झल्लाकर तुमपर गुस्सा हो जाता था फिर भी तुम नहीं मानती थी और खाना खिलाकर ही दम लेती थी. माँ कभी-कभी यहाँ का बेस्वाद खाना खाते वक़्त वो बातें याद आतीं है, जब घर होने पर मैं तुम्हारे साथ एक हीं थाली में खाना खाता था तो भाभी अक्सर कहती थी कि आप अब बच्चे नहीं रहे जो माँ के साथ एक ही थाली में खाओ. इतना कहतें ही हम दोनों हँस पड़ते थे और भाभी भी मुस्कुराते हुए वहीँ बैठकर मुझे छेडती और परेशान करने लगती.  बचपन खत्म होते ही पढाई को लेकर मैं हमेशा तुमसे दूर ही रहा. आपने भी यही सोचा होगा कि पढ़ाई खत्म होने के बाद मेरा बेटा मेरे पास रहकर नौकरी करेगा. सब कुछ इतना आसान कहाँ है माँ, नौकरी मिल भी जाये तो पता नहीं घर से कितना दूर होगा....पढाई और नौकरी रिश्तों के बीच दूरियां पैदा कर रही है. ज़िन्दगी के लिए दोनों ज़रूरी है पर क्या रिश्ते ज़रूरी नहीं हैं ??? रिश्तों के बिना ज़िन्दगी भी, क्या ज़िन्दगी है ??? माँ कभी-कभी ना इस सुनसान कमरे में अपने रिश्तेदारों की बहुत याद आती है, उस वक़्त बस खट्टी-मिट्ठी यादों के पिटारे से पुरानी बातें, छेड़खानियाँ, हँसी-ठिठोली याद कर मुस्कुरा लेता हूँ और सोचता हूँ ऐसा वक़्त कभी ना कभी फिर मिलेगा. बड़ा अच्छा लगता है पुरानी यादों को ताज़ा करने में पर माँ तुम बहुत याद आती हो, कभी कभी तो अकेले में रो भी लेता हूँ.

                    हरबार छुट्टी खत्म होने पर जब मैं घर से विदा होता हूँ तो दिल भारी हो जाता है. जब तुम विदा करते समय अपनी डबडबाई आखों के साथ मुझे गले लगाती हो और फिर मेरे चेहरे को चूमने के बाद हाथ हिलाकर विदा करती हो तो कलेजा फट सा जाता है. लगता है जैसे छोटे बच्चे की तरह तुमसे लिपटकर मुझे दूर न करने की ज़िद करूँ पर कम्बखत मैं ऐसा भी नहीं कर सकता. मुझे ये भी पता है माँ, तुम्हारी आँखों से बहते खामोश आसूँ ये चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे होतें हैं कि बेटा मुझे छोड़कर मत जा और फिर तुम दिल को समझा लेती हो कि बेटा कुछ बनने जा रहा है... कितना मुश्किल होता होगा वो पल माँ है ना.  तुम हमेशा कहती हो कि मेरी एक बेटी होती तो अच्छा होता पर बेटी ना होने के वाबजूद बेटी की विदाई जैसा पल बार-बार तुम्हें मिलता है... तुम महान हो माँ जो चुप-चाप हर बार दर्द को सह लेती हो. मुझे बड़ा दुःख होता है माँ , मैं बहुत शर्मिंदा हूँ माँ कि मैं आज भी आपके पास नहीं हूँ जबकि आपकी उम्र ढल रही है, आप अक्सर बीमार रहतीं है, इस वक़्त आपको मेरी बहुत ज़रूरत होती है और मैं यहाँ बैठकर मोबाइल से बस आपका हाल पूछता रहता हूँ..... तुम महान हो माँ, इतने कष्ट के वाबजूद मुझे रुकने के लिए नहीं कहती. ये सब सिर्फ मेरे लिए करती हैं ना आप, ताकि मेरी जिंदगी बन जाये पर माँ आप ही तो मेरी जिंदगी हो ...
                                                            जी करता है सबकुछ छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊ पर इससे भी तो तुम्हे दुःख हीं होगा और मेरा कमीना दिमाग भी इसकी इज़ाज़त नहीं देता पर कब तक इस कमीने दिमाग कि बात मानता रहूँ ,आखिर कब तक माँ ??? तुम बहुत भोली हो माँ जो तुम समझती हो कि मुझे नौकरी घर के पास ही मिल जाएगी और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा. जहाँ तक मुझे दिखाई दे रहा है अभी साथ होने के कोई आसार नहीं है . मुझे माफ़ करना माँ, मैं तुमपर कई बार गुस्सा भी हो जाता हूँ जैसेकि इसबार घर से वापिस आने के वक़्त तुम मेरे लिए अपने हाथों से बने पकवान मेरे बैग में डाल रही थी और मैंने मना कर दिया कि मत डालो. फिर भी आपने डाल दिए और मैं आप पर गुस्सा हो गया. पता नहीं क्यूँ वापसी के वक़्त मेरा दिमाग कुछ गर्म हो जाता है.. आखिर वो पकवान किसके लिए दे रही थी, मेरे लिए ही ना , बाद में ट्रेन में मेरी भूख को शांत इसी पकवान ने ही किया. तब मुझे अपने आप पर अफ़सोस और आपके प्यार पर गर्व हो रहा था.
                                                                अभी भी मैं छुट्टी होने का इतज़ार करता रहता हूँ ताकि आपका लाड़-दुलार पा सकूँ. घर आने पर मेरी पसंद की चीजें बनाकर मुझे खिलाती हैं और आप कितना खुश होती हो, कितना सुकून होता है आपके चेहरे पर, यही तो माँ होती है, मैं आपको कभी खोना नहीं चाहता माँ... आपकी जगह कोई भी नहीं ले सकता माँ... मैं बहुत खुदगर्ज़ हूँ माँ, आपने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया पर मैं चाहकर भी आपके लिए कुछ नहीं कर सका...हो सके तो मुझे माफ़ करना ....मुझे पता है ये ख़त पापा आपको पढ़कर सुना रहे होंगें और उन्हें दुःख हो रहा होगा कि मेरे बारे में कुछ नहीं कहा.. पापा ये सारी बातें सिर्फ माँ के लिए नहीं है आपदोनों के लिए है ...वैसे भी माँ शब्द इतना प्यारा लगता है कि माँ कहना बड़ा अच्छा लगता है ...आपसे भी मैं उतना ही प्यार करता हूँ जितना माँ से ...वैसे नाराज़ मत होइएगा जल्दी ही मैं आपके नाम की भी चिट्ठी लिखूंगा ...
                                                                         
                                                                                                                आपका मज़बूर बेटा .....

   
                                                                                                                                          गजेन्द्र कुमार 

4 comments:

  1. एक माँ को अपने बेटे की सफलता, उसकी खुशी और उसका थोड़ा सा प्यार और सम्मान ही चाहिए होता है बस ..। और यदि हम अपनी माँ को इनमें से केवल दो चीज़ें प्यार और सम्मान ही दे पाएँ तो बहुत है। भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

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    1. main aapki baaton se sahmat hun..per ek apna dil bhi hota hai na ...jo ki sirf pyar aur samman hi nahi balki saath rahna bhi chata hai..per..

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  2. बेहद प्यारी ख़त

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