Sunday, 18 August 2013

चलो नेता बने ....


मेरे पिता जी के जैसे लाखों करोड़ों पिताओं के सपने चकनाचूर हो रहे हैं...हर पिता का सपना होता है कि उसका बेटा उनका नाम रोशन करेगा ...पर बहुत कम ही पिताओं का यह सपना सच हो पाता है ....आज के युवाओं को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती...युवाओं के दिल के सारे अरमान आसुंओं में बह जाते हैं...बड़ा दुखदायी होता है ये लम्हा इक ही पल में बेटा और बाप दोनों का ख़ाब बिखर जाता है...इन्ही परेशानियों को दूर करने के लिए मैंने सोचा है कि नेता बन जाऊ...नेता बनने से आज के युवा काफी घबराते हैं...इस फील्ड में भीड़ भी कम है... सोचता हूँ अपना समय पढाई की जगह नेता बनने में लगाया होता तो आज कुछ न कुछ ज़रूर बन जाता...यार इस फील्ड में स्कोप भी बहुत है, पंचायत के सरपंच, मुखिया से लेकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति तक बनने का स्कोप है. अरे लाख पढाई कर लो आपको कोई भी पढाई प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पंहुचा सकती, आप लाख पढाई कर लो काम तो नेता जी के अन्दर ही करोगे ना... और पैसे तो हैं ही चाहे आप सरपंच ही बन जाओ, इसमें कमाई बहुत है...आप पूरी जिंदगी नौकरी कर के एक फटफटी स्कूटर से लेकर ज्यादा से ज्यादा लखटकिया( नैनो ) तक पहुँच सकते हो पर इक बार भी आप अगर अपने गाँव का सरपच बन गये तो आपके पास बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ होंगी और पढ़े लिखे लोग भी सरपंच साहब कहकर बुलाएँगे... और इज्ज़त तो है हीं, भले आप पीछे में गालियाँ निकालो पर सामने तो नेता जी हीं कहोगे ...और नेता जी का नाम पूरा देश न सही उस क्षेत्र के सारे लोग तो जानते ही है ..इस तरह नाम भी रोशन हो जायेगा और पिता जी भी खुश ...नेताजी कहने पर आप अपने आँखों के सामने सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओ का अक्स मत उभारना...वो तो बीती बात हो गयी है अब नेता बनने का मतलब सेवा करना नहीं है..नेता बनना एक पेशा बन गया है, एक रोज़गार बन गया है, जिसके ज़रिये कोई भी इन्सान बहुत कम समय में नाम, दौलत, शोहरत सब कुछ पा सकता है... नेता बनने के बाद आपके पास पॉवर आ जाती है फिर आपको किसी के पास नौकरी के लिए दौड़ना नहीं पड़ता बल्कि आपके कहने पर किसी को भी नौकरी मिल सकती है..आपकी सिफारिश को किसी में टालने की हिम्मत नहीं होती...आज के लोग नेता बनने से बड़े भागते हैं...मैं तो कहता हूँ जब नेता बनना एक पेशा बन गया है तो क्यूँ ना नेता बनने का कोर्स भी शुरू कर दिया जाये ...फिर देखना कैसे लोग डॉक्टर और इंजीनियरिंग की पढाई छोड़ कर नेता बनने का कोर्स ज्वाइन करेंगे और फिर घर वाले भी नेता बनने के लिए प्रोत्साहित करेंगे...लोग कहते हैं नेता बड़े भ्रस्त होते हैं...मैं तो कहता हूँ नेता बनने की प्रोफेशनल डिग्री शुरू कर ही दो ताकि जैसे आज हर फील्ड में प्रोफेशनल लोगों की भरमार होने की वजह से उनकी सैलरी बहुत कम हो गयी है..वैसे ही नेताओं के फील्ड में भी प्रोफेशनल्स के भरमार होने पर इनकी इनकम भी कम हो जाएगी..फिर शायद गरीबी और अमीरी का फासला कुछ कम हो जायेगा ...
               
                                                                            गजेन्द्र कुमार 

Friday, 16 August 2013

पंजाब ......

       
ऐ पंजाब मैंने तो मुहब्बत की थी,
यूँ साज़िश न कर आहिस्ते-आहिस्ते ...
तू बेवफा निकला ,
यूँ काँटें न बिछा रस्ते-रस्ते ...
तेरी यही है मर्ज़ी,
तो छोड़ दूंगा तुझे धीरे-धीरे...
कुछ वक़्त और झेल ले मुझे,
अभी आऊंगा मिलने महीने-महीने.....
दर्द कम ख़ुशी ज्यादा, आंसू कम हँसी ज्यादा
दी है तूने सफ़र ऐ पंजाब के रस्ते-रस्ते ...
अहसान है तुम्हारा, मांग लेना जो दिल चाहे
सब कुछ दे दूंगा हस्ते-हस्ते ....
खुश हो लेना जी भरके
जब एक दिन चल दूंगा छोड़के सबेरे-सबेरे ...
ऐ पंजाब मैंने तो मुहब्बत की थी
यूँ साज़िश न कर आहिस्ते-आहिस्ते ...
                                                 
जब से सच लिखने लगा हूँ,
लोग कहने लगे हैं, अच्छा लिखते हो.....
                                                      गजेन्द्र कुमार
                                               

Thursday, 15 August 2013

ये अंग्रेजी मेम भी ना ......

ये अंग्रजी मेम न मुझे बड़ा परेशान करती है..बचपन से हीं मैंने हिंदी को प्यार किया..बड़ा चिढ़ती है अंग्रेजी मेम, शुरू से हीं कोशिश करती रही है कि मैं उसे पसंद करूँ, उसे चाहूँ...पर मुझसे ऐसा न हो सका, ऐसी बात नहीं है कि मैं अंग्रेजी मेम से नफरत करता हूँ ...पर पता नहीं क्यूँ अंग्रेजी मेम को मैं प्यार न कर सका...मुझे भी दुःख होता है कि जो मुझे पाने के लिए जी जान से पीछे पड़ी हो...उसके प्यार को मैं कभी समझ नहीं सका...उसे नज़रंदाज़ करता रहा...पर क्या करूँ हिंदी ने मुझे बचपन से अपना प्यार दिया है, उसके प्यार और दुलार ने कभी अंग्रेजी मेम के बारे में सोचने का मौका हीं नहीं दिया...अंग्रेजी मेम शुरू से हीं परेशान करती आई है, इसलिए मेम को अभी तक बहला-फुसलाकर, थोड़ा-बहुत प्यार करके परेशानी दूर कर लेता था....पर अंग्रेजी मेम अब चाहती है कि मैं उसे दिलोंजान से चाहूँ..ये तो नहीं हो सकता जिस हिंदी ने मुझे बोलना सिखाया, मुझे पढ़ना सिखाया, मुझे अच्छी तालीम देकर मुझे एक अच्छा और योग्य इंसान बनाया...उसके प्यार को कैसे भुला सकता हूँ...किसी के प्यार के साथ गद्दारी कैसे कर दूँ...अंग्रेजी मेम मुझे हर हाल में पाना चाहती है,यही कारण है कि अब मुझे सिर्फ परेशान हीं नहीं करती, दूसरों के सामने मेरी बेज्ज़ती भी करवाने लगी है....अंग्रेजी मेम जैसे हिंदुस्तान के अन्य लोगों को ज़बरदस्ती अपनाया है वैसे हीं ज़बरदस्ती मेरे साथ कर रही है...मेरी बेज्ज़ती करवाकर मुझे अंग्रेजी जानने वालों के सामने नीचा दिखाने की कोशिश करने लगी है....बड़ा दुःख होता है जब हमारे जितना ही शिक्षा ग्रहण करने वाले और हमसे कम ज्ञान वालों को अच्छी नौकरी और इज्ज़त सिर्फ इसलिए मिल जाती है कि वो अंग्रेजी जानता है... क्या ये ग़लती है कि मैंने हिंदी भाषा को चुना, हिंदी में पढ़ाई की, मेरी परवरिश हिंदी के वातावरण में हुई ??? अगर ये मेरी ग़लती है तो मैं भारत सरकार से अपील करना चाहता हूँ की हिंदी की पढ़ाई तत्काल बंद कराकर पढ़ाई अंगरेजी में शुरू करा दें, ताकि आने वाले हिंदी भाषी पीढ़ी ये असमानता महसूस न कर सके...अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो हिंदी को लेकर जो आज के युवाओं में हीन भावन आ रही है उसे कृपया दूर करने की कोशिश करे...हिंदी की उपेक्षा के कारण अंग्रेजी नहीं जानने वालों को कम करके आका जाता है, अंग्रेजी जानने वालों को श्रेष्ठ माना जाता है भले वो हिंदी जानने वालों से कम जानकारी रखते हों...सरकार कभी क्या हिंदी और अंग्रेजी के पेशोपेश में पड़े छात्रों की पीड़ा समझने की कोशिश की है अगर नहीं तो कम से कम अब शुरू कर दे...मुझे पता है अंग्रेजी न जानने की वजह से मैंने बहुत कुछ खोया है और अब मैं और खोना नहीं चाहता...यही पाने की चाहत मुझे भी बेदर्द अंग्रेजी मेम को अपनाने पर मजबूर कर देगी ....पर मैं जानता हूँ की अंग्रेजी मेम ज़बरदस्ती मुझे हासिल तो कर लेगी पर मेरा प्यार नहीं पा सकेगी...मैं हिंदी को नहीं छोड़ सकता और न मुझे हिंदी छोड़ सकती है....शायद आने वाली पीढ़ी हिंदी को भुला दे पर मैं ऐसा नहीं कर सकता....

                                                                                                                    गजेन्द्र कुमार  

Wednesday, 14 August 2013

स्वतंत्रता दिवस पर क्या वाकई ख़ुशी होती है ???

हरबार की भांति इसबार भी स्वतंत्रता दिवस आने वाला है.. कल फेसबुक, ट्विटर के साथ-साथ और भी कई सोशल नेटवर्किंग साईटस पर शुभकामनाओं की बाढ़ सी आ जाएगी..लगता है जैसे लोग स्वतंत्रता दिवस के आने पर बहुत ख़ुश होते हैं, पर क्या वाकई ऐसा है ??? मुझे तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता..भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, यहाँ सबसे ज्यादा युवा हैं...देश की रीढ़ होतें हैं युवा, देश की उर्जा होतें हैं युवा, देश का भविष्य होता है युवा....पर क्या वाकई आज के युवा खुश हैं ??? ये सवाल आज क्यूँ खड़ा हो रहा है, किसी ने जानने की कोशिश की है ??? शायद नहीं ...देश का युवा आज भारी निराशा के दौर से गुज़र रहा है...युवाओं के सामने रोज़गार एक बहुत बड़ी चुनौती है...रोज़गार न मिलने की वजह से आज का युवा वर्ग घोर निराशा के दौर से गुज़र रहा है...आज के युवा काफी पढ़े-लिखे होतें हैं इसके बावजूद इन्हें रोज़गार नहीं मिलता.. इनकी डिग्री की कोई अहमियत नहीं रह गयी है...किसी को अगर रोज़गार मिल भी जाता है तो उन्हें इतना कम पैसा मिलता है कि वो अपनी सैलरी किसी को भी बताने से हिचकिचाता है.. ये युवा फिर अपनी तुलना उन अनपढ़ मजदूर से करने लगतें हैं जो हर महीने इनसे कही ज्यादा कमा लेते हैं...उन्हें फिर अपनी पढाई पर खर्च किये गये धन, समय और मेहनत पर काफी अफ़सोस होता है..इन परिस्थितियों के लिए वो खुद को जिम्मेवार समझ लेते और अन्दर ही अन्दर घुटते रहतें हैं, पर क्या सच में इन परिस्थितियों के लिए  युवा खुद जिम्मेवार है ??? युवा हीनभावन से ग्रस्त हो जाते हैं, वो अपने माता-पिता से आँख नहीं मिला पाते, अपने सगे-सम्बन्धियों से मिलने से भी कतराते हैं...क्यूँकि, उन्हें डर होता है की कहीं कोई सैलरी न पूछ ले....बेचारे युवा घुट-घुट कर जीने पर मजबूर हैं...इतनी सैलरी में वो न ठीक ढंग से रह सकते हैं, न अच्छा खाना खा सकते हैं न हीं अपना कोई और शोक पूरा कर सकता है...अगर उसकी शादी हो गयी है तो फिर वो अपना घर कैसे चलता है उसी को पता होता है...जो उच्च पद पर बैठे हैं उनका वेतन लाखों में होता है पर इन युवाओं का वेतन बस कुछ हज़ार होता है.. ये मानता हूँ कि वरिष्ठ लोगों कि सैलरी ज्यादा होनी चाहिए मगर ये ज़मीं असमान का फर्क कही से सही नहीं है...एक युवा बेचारा कुछ भी खरीदने से पहले दस बार सोचता है, वही वो लोग बेकार चीजों को खरीदकर अपने शान ओ शोकत का दिखावा करते हैं...युवा के पास एक स्कूटर भी नहीं होता और उनके पास महंगी-महंगी गाड़ियाँ होती है..बेचारे युवा काम भी आठ से दस घंटे करते हैं फिर भी उनकी दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने में सोचना पड़ता है ....ऐसी स्वतंत्रता से क्या फायदा जिसमें इंसान घुट-घुट कर जीता हो...निराशा ने युवाओं को उर्जा विहीन कर दिया है बेचारे अपनी आवाज़ भी बुलंद नहीं करते, जबकि उन्हें पता होता है कि उनका शोषण हो रहा है...उन्हें डर होता है कि आवाज़ उठाने से कहीं उनकी जॉब हीं न चली जाये...सरकार राग अलापा करती है कि हम रोज़गार का सृजन कर रहे हैं...ऐसी रोज़गार कि सृजनता से क्या फायदा जहाँ उनकी पढाई-लिखाई कि क़द्र ही नहीं होती हो, जो उनकी आम ज़रूरतों को भी पूरा नहीं करती...स्वतंत्रता का मतलब ये तो नहीं होता.....
ऐसा सिस्टम क्या सही है की इक इंसान रोज़ शाही पनीर खाता हो तो दूसरा एक सुखी रोटी खाने के लिए तरसता हो ...देश का भविष्य अगर युवा है और आज के युवाओं का हाल ऐसा है तो आगे क्या होगा ये सोचकर डर लगता है ........
                                       
                                                                                               गजेन्द्र कुमार 

Tuesday, 13 August 2013

हालात.....

ना खुल के रो पाता हूँ, ना खुल के हँस पाता हूँ 
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे ......
अब तो अपने भी अपने नहीं लगते 
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे ....
ये मेरी गलती है या नहीं, ये समझ नहीं पाता 
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे ......
वक़्त मुझसे इतना नाराज़ क्यूँ हैं, ये समझ नहीं पाता 
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे..... 
हर किसी के नज़र में अब आग है मेरे लिए 
कुछ ऐसे हैं हालात  मेरे.... 
कब बदलेंगे हालात मेरे, ये पता नहीं मुझे 
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे.... 
क्या करूँ मैं कुछ समझ नहीं पाता
 कुछ ऐसे हैं हालात मेरे .....
ना खुल के रो पाता हूँ, ना खुल के हँस पाता हूँ 
कुछ ऐसे हैं हालत मेरे ......
                                                                              
                                                                        गजेन्द्र कुमार 

Saturday, 10 August 2013

हाँ मैं बेरोजगार हूँ ....


हाँ मैं बेरोजगार हूँ , एक रोज़गार ढूंढ़ता हूँ. रोज़गार ढूँढना हीं मेरा रोज़गार बन गया है. मेरे पास अच्छी-अच्छी डिग्री है, बड़ी संभाल के रखता हूँ डिग्री के इन कागजों को, इतना ख्याल अपना भी नहीं रखता. आखिर इसी से तो मेरी जिंदगी का आकलन कुर्सी पर बैठे कुछ लोग करेंगे कि मैंने किया क्या है अब तक...पहले जो बड़ा होनहार लड़का कहा करते थे वो अब मुझे धरती का बोझ समझते हैं...बड़ी चिढ होती है अब होनहार शब्द से .. बड़ी उम्मीद के साथ जाता हूँ हर एक इंटरव्यू में पर बात नहीं बनती... बड़ी घबराहट होती थी शुरुआत में जब इंटरव्यू देने जाता था...अब बड़े आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू देने जाता हूँ जैसे की मुझे पता है कि क्या होने वाला है .. ये इंटरव्यू लेने वाले भी न अजीब होते हैं, कहते हैं आपके पास फील्ड एक्सपीरियंस नहीं है. अब इनकों यही समझ में नहीं आता कि आप मौका हीं नहीं दोगे तो एक्सपीरियंस कहाँ से आएगा.... इंटरव्यू के लिए मेरे जैसे कई होनहार लोग आते हैं, उनसे बात होती है तो पूछने लगते हैं कि आपकी कोई सिफारिश है ??...सुना है सिफारिशें  बहुत चलती है आजकल ...आजकल सिफारिश वालों की जुगाड़ में हूँ पर कोई मिलता ही नहीं,,, काश मेरे परिवार में भी कोई नेता होता, नेताओं की सिफारिश बड़ी कारगर होती है...नेताओं को देखकर सोचता हूँ, ये नेता भी तो बेरोजगार हीं होते हैं जबरदस्ती दूसरों की सेवा करना अपना रोज़गार बना लेते हैं..इसके लिए किसी डिग्री की भी ज़रूरत नहीं होती, फालतू का टाइम बेस्ट किया पढाई में, अगर इतनी मेहनत इस फील्ड में की होती तो आज लोगों की सिफारिश मैं करता...पर मैं तो बेरोजगार हूँ मेरी कोई नहीं सुनता ...मेरी आँखें झुक जाती है जब कोई पूछता है क्या करते हो...बस धीरे से कहकर चल देता हूँ कि रोज़गार ढूंढ़ता हूँ.....

Thursday, 1 August 2013

हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है...



नेताजी हम कुछ नहीं बोलेगा...हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है ...हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ आप जैसे नेताओं के लिए है..नेताओं के सिवा अगर कोई और कुछ भी बोले तो आपलोगों को बड़ा दुःख होता है...लेखिका शोभा डे के ट्वीट " मुंबई को भी एक अलग राज्य बना देना चाहिए " से आप सभी माननीये राजनेताओं को बड़ी ठेस पहुंची...आप सभी नेतागण आगबबूले होकर शोभा डे पर तीखी टिपण्णी देनी शुरू कर दी... इसी तरह पिछले हफ्ते नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने जब कहा की प्यारे नरेन्द्र मोदी जी को मैं प्रधानमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहता तो भी हमारे सेवा के लिए तत्पर आप राजनेताओं को बड़ा दुःख हुआ...अमर्त्य सेन जी को तो आपने भारत छोड़ने तक की आपने सलाह दे डाली...प्यारे असीम त्रिवेदी भाई ने तो कुछ बोला भी नहीं था बल्कि चित्रकारी की थी इसकी वजह से उसे जेल भी जाना पड़ा...एक और चित्रकार स्वर्गीय एम एफ हुसैन साहब ने भी अपनी चित्रकारी दिखाई थी इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी...पूरी जिंदगी भारत में गुजारने के बाद जिंदगी के आखिरी लम्हों में उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा...मरने के बाद भी उन्हें अपने कर्मभूमि की मिट्टी तक नसीब नहीं हुई .... वही हमारे शुभचिंतक आप राजनेताओं को कुछ भी बोलने का अधिकार है...नरेन्द्र मोदी अगर इन्सान की तुलना कुत्ते से करते हैं तो उसमें कुछ भी गलत नहीं दिखता, नेता अगर घोटाला करे तो आपको गलत नहीं दिखता.. बालठाकरे कुछ भी बोले तो भी गलत नहीं दिखता....राज ठाकरे जब उत्तरभारतीयों को लेकर अनाप-सनाप कुछ भी बोलता है तो भी आप नेताओ को कुछ भी गलत नहीं दिखता.. आप चुप-चाप मुह पर हाथ रखकर बैठे रहते हैं, पर अगर आम जनता कुछ भी बोले तो आपको असहनीय पीड़ा होती है और मीडिया के सामने आकर आम जनता के लिए बड़ी मीठी-मीठी भाषा के ज़रिये बड़े अच्छे-अच्छे सलाह देने लगते हैं, जो की हमारे और हमारे देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है ...ये हम मानते है की आपको बोलने की अच्छी कला आती हैं पर आप गलत करोगे तो हम चुप नहीं रहेगा..फिर हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है ...

                                                                                    गजेन्द्र कुमार