ऐ पंजाब मैंने तो मुहब्बत की थी,
यूँ साज़िश न कर आहिस्ते-आहिस्ते ...
तू बेवफा निकला ,
यूँ काँटें न बिछा रस्ते-रस्ते ...
तेरी यही है मर्ज़ी,
तो छोड़ दूंगा तुझे धीरे-धीरे...
कुछ वक़्त और झेल ले मुझे,
अभी आऊंगा मिलने महीने-महीने.....
दर्द कम ख़ुशी ज्यादा, आंसू कम हँसी ज्यादा
दी है तूने सफ़र ऐ पंजाब के रस्ते-रस्ते ...
अहसान है तुम्हारा, मांग लेना जो दिल चाहे
सब कुछ दे दूंगा हस्ते-हस्ते ....
खुश हो लेना जी भरके
जब एक दिन चल दूंगा छोड़के सबेरे-सबेरे ...
ऐ पंजाब मैंने तो मुहब्बत की थी
यूँ साज़िश न कर आहिस्ते-आहिस्ते ...
जब से सच लिखने लगा हूँ,
लोग कहने लगे हैं, अच्छा लिखते हो.....
गजेन्द्र कुमार
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