ना खुल के रो पाता हूँ, ना खुल के हँस पाता हूँ
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे ......
अब तो अपने भी अपने नहीं लगते
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे ....
ये मेरी गलती है या नहीं, ये समझ नहीं पाता
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे ......
वक़्त मुझसे इतना नाराज़ क्यूँ हैं, ये समझ नहीं पाता
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे.....
हर किसी के नज़र में अब आग है मेरे लिए
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे....
कब बदलेंगे हालात मेरे, ये पता नहीं मुझे
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे....
क्या करूँ मैं कुछ समझ नहीं पाता
कुछ ऐसे हैं हालात मेरे .....
ना खुल के रो पाता हूँ, ना खुल के हँस पाता हूँ
कुछ ऐसे हैं हालत मेरे ......
गजेन्द्र कुमार
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