ये अंग्रजी मेम न मुझे बड़ा परेशान करती है..बचपन से हीं मैंने हिंदी को प्यार किया..बड़ा चिढ़ती है अंग्रेजी मेम, शुरू से हीं कोशिश करती रही है कि मैं उसे पसंद करूँ, उसे चाहूँ...पर मुझसे ऐसा न हो सका, ऐसी बात नहीं है कि मैं अंग्रेजी मेम से नफरत करता हूँ ...पर पता नहीं क्यूँ अंग्रेजी मेम को मैं प्यार न कर सका...मुझे भी दुःख होता है कि जो मुझे पाने के लिए जी जान से पीछे पड़ी हो...उसके प्यार को मैं कभी समझ नहीं सका...उसे नज़रंदाज़ करता रहा...पर क्या करूँ हिंदी ने मुझे बचपन से अपना प्यार दिया है, उसके प्यार और दुलार ने कभी अंग्रेजी मेम के बारे में सोचने का मौका हीं नहीं दिया...अंग्रेजी मेम शुरू से हीं परेशान करती आई है, इसलिए मेम को अभी तक बहला-फुसलाकर, थोड़ा-बहुत प्यार करके परेशानी दूर कर लेता था....पर अंग्रेजी मेम अब चाहती है कि मैं उसे दिलोंजान से चाहूँ..ये तो नहीं हो सकता जिस हिंदी ने मुझे बोलना सिखाया, मुझे पढ़ना सिखाया, मुझे अच्छी तालीम देकर मुझे एक अच्छा और योग्य इंसान बनाया...उसके प्यार को कैसे भुला सकता हूँ...किसी के प्यार के साथ गद्दारी कैसे कर दूँ...अंग्रेजी मेम मुझे हर हाल में पाना चाहती है,यही कारण है कि अब मुझे सिर्फ परेशान हीं नहीं करती, दूसरों के सामने मेरी बेज्ज़ती भी करवाने लगी है....अंग्रेजी मेम जैसे हिंदुस्तान के अन्य लोगों को ज़बरदस्ती अपनाया है वैसे हीं ज़बरदस्ती मेरे साथ कर रही है...मेरी बेज्ज़ती करवाकर मुझे अंग्रेजी जानने वालों के सामने नीचा दिखाने की कोशिश करने लगी है....बड़ा दुःख होता है जब हमारे जितना ही शिक्षा ग्रहण करने वाले और हमसे कम ज्ञान वालों को अच्छी नौकरी और इज्ज़त सिर्फ इसलिए मिल जाती है कि वो अंग्रेजी जानता है... क्या ये ग़लती है कि मैंने हिंदी भाषा को चुना, हिंदी में पढ़ाई की, मेरी परवरिश हिंदी के वातावरण में हुई ??? अगर ये मेरी ग़लती है तो मैं भारत सरकार से अपील करना चाहता हूँ की हिंदी की पढ़ाई तत्काल बंद कराकर पढ़ाई अंगरेजी में शुरू करा दें, ताकि आने वाले हिंदी भाषी पीढ़ी ये असमानता महसूस न कर सके...अगर सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो हिंदी को लेकर जो आज के युवाओं में हीन भावन आ रही है उसे कृपया दूर करने की कोशिश करे...हिंदी की उपेक्षा के कारण अंग्रेजी नहीं जानने वालों को कम करके आका जाता है, अंग्रेजी जानने वालों को श्रेष्ठ माना जाता है भले वो हिंदी जानने वालों से कम जानकारी रखते हों...सरकार कभी क्या हिंदी और अंग्रेजी के पेशोपेश में पड़े छात्रों की पीड़ा समझने की कोशिश की है अगर नहीं तो कम से कम अब शुरू कर दे...मुझे पता है अंग्रेजी न जानने की वजह से मैंने बहुत कुछ खोया है और अब मैं और खोना नहीं चाहता...यही पाने की चाहत मुझे भी बेदर्द अंग्रेजी मेम को अपनाने पर मजबूर कर देगी ....पर मैं जानता हूँ की अंग्रेजी मेम ज़बरदस्ती मुझे हासिल तो कर लेगी पर मेरा प्यार नहीं पा सकेगी...मैं हिंदी को नहीं छोड़ सकता और न मुझे हिंदी छोड़ सकती है....शायद आने वाली पीढ़ी हिंदी को भुला दे पर मैं ऐसा नहीं कर सकता....
गजेन्द्र कुमार
गजेन्द्र कुमार
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